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Hathras gangrape:Uttar Pradesh Dalit girl, victim of brutal gang rape | हाथरस गैंगरेप आरोपियों के परिवार का घमंड देखिए, कहा- हम इनके साथ बैठना-बोलना भी पसंद नहीं करते, हमारे बच्चे इनकी बेटी को छुएंगे क्या?

techforftcp by techforftcp
October 1, 2020
in India
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हाथरसएक घंटा पहलेलेखक: पूनम कौशल

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  • ब्राह्मण और ठाकुर पड़ोसियों ने पीड़ित परिवार का हालचाल तक नहीं पूछा, पीड़ित के भाई बोले- किसी के साथ की बात तो दूर की है, यहां हमसे कौन बात करता है?’
  • पीड़ित की भाभी कहती हैं, पुलिसवालों ने पूछे- क्या आरोपी का नंबर मोबाइल में है? वो तो हमारी जाति का भी नहीं था, दूसरी जाति के लोगों का नंबर हमारे फोन में क्यों होगा?
  • आरोपी के पिता ने 20 साल पहले पीड़ित की बुआ से छेड़खानी की थी, उसके दादा ने विरोध किया तो उंगलियां काट दी थीं, गांववाले कहते हैं, वो लोग महिलाओं को परेशान करते हैं

दिल्ली से बमुश्किल 160 किलोमीटर दूर हाथरस गैंगरेप पीड़ित का गांव बूलगढ़ी। गांव के भीतर चार पहिए से जाना मुमकिन नहीं था, इसलिए मैंने वहीं के एक युवक से बाइक पर लिफ्ट ली। बात की शुरुआत ही उसने ये कहकर की- ‘यहां के लोग मरना पसंद करेंगे, गैर बिरादरी में उठना-बैठना नहीं।’

वो ठाकुर था। लेकिन गैंगरेप की घटना पर उसे गहरा अफसोस था। वो कहने लगा, उस दलित बच्ची के साथ बहुत गलत हुआ। दिल्ली में भी जब सफदरजंग अस्पताल में मैं पीड़ित के परिजन से बात कर रही थी तब उसके भाई और पिता बार-बार जाति का जिक्र कर रहे थे। तब मेरे मन में ये सवाल आ रहा था कि क्या अभी भी हमारी वाली दुनिया में इतना गहरा जातिवाद है? गांव पहुंचते ही इस सवाल का जवाब भी मिल गया। गिरफ्तार आरोपियों के परिवार के लोगों से मिली तो बड़े रुबाब से कहते मिले, ‘हम इनके साथ बैठना-बोलना तक पसंद नहीं करते, हमारे बच्चे इनकी बेटी को छुएंगे?’

इस ठाकुर और ब्राह्मण आबादी गांव में दलितों के गिने-चुने घर हैं और उनकी दुनिया अलग है। यहां जातिवाद की जड़ें बेहद भीतर तक धंसी हुई हैं। लोग बात-बात में जाति की बात करते हैं। बावजूद इसके तथाकथित उच्च जाति के लोगों का यही कहना था कि ये दलित परिवार बहुत सज्जन है, किसी से कोई मतलब या बैर नहीं रखता। गांव की एक ठाकुर महिला कहती हैं, ‘इस परिवार के लोग ठाकुर बुजुर्गों को देखकर अपनी साइकिल से उतर जाते थे और पैदल चलते थे ताकि किसी ठाकुर को ये ना लगे कि उनके सामने ये लोग साइकिल से चल रहे हैं, उनकी बराबरी कर रहे हैं।’

तस्वीर उस गांव की हैं, जहां 14 सिंतबर को दलित लड़की के साथ दरिंदों ने गैंगरेप किया था।

तस्वीर उस गांव की हैं, जहां 14 सिंतबर को दलित लड़की के साथ दरिंदों ने गैंगरेप किया था।

यहां जातिवाद इतना गहरा है कि ब्राह्मण और ठाकुर पड़ोसियों ने पीड़ित परिवार का हालचाल तक नहीं पूछा, उनके घर शोक जताने जाना तो दूर। जब मैंने पीड़ित के भाई से पूछा कि क्या इस घटना के बाद उन्हें गांव के लोगों का साथ मिला है तो बोले, ‘किसी ने हाल तक तो पूछा नहीं, साथ की बात दूर की है। यहां हमसे ही कौन बात करता है?’

पीड़ित की भाभी बदहवास हैं। वो रोते हुए बार-बार यही कहती हैं, ‘हमारी बेटी का आखिरी बार मुंह तक नहीं देखने दिया। अब तक हमें लग रहा था कि इंसाफ होगा, लेकिन रात में पुलिस ने जो किया उससे सरकार और पुलिस से भरोसा उठ गया है। वो कहती हैं, ‘कोई इतना अमानवीय कैसे हो सकता है कि किसी को उसकी बेटी का चेहरा तक न देखने दे। वो चौबीस घंटे मेरे साथ रहती थी, उसका चेहरा मेरी आंखों के सामने घूम रहा है।’

‘अस्पताल में उससे बात हुई थी तो वो बस यही कह रही थी किसी तरह मुझे घर ले चलो, मैं घर पर ठीक हो जाऊंगी, यहां मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। वो जीना चाहती थी। हम तो समझ नहीं पा रहे हैं कि दिल्ली के अस्पताल में क्या हुआ कि उसकी जान चली गई। हमें उम्मीद थी कि वो ठीक होकर घर लौट आएगी। दीदी को इलाज अच्छा नहीं मिला।’

तस्वीर पीड़ित परिवार की है। पीड़ित की मां की हालत ठीक नहीं है, भाभी बदहवास हो गईं हैं।

तस्वीर पीड़ित परिवार की है। पीड़ित की मां की हालत ठीक नहीं है, भाभी बदहवास हो गईं हैं।

मेरे ये पूछने पर कि क्या कभी उसने मुख्य आरोपी संदीप के बारे में कोई शिकायत की थी या कभी उससे कोई बात हुई थी, वो कहती हैं, ‘उसने कभी भी संदीप से किसी तरह की कोई बात नहीं की। शुरू में पुलिसवाले पूछ रहे थे कि क्या उसका नंबर हमारे मोबाइल में है। लेकिन जिससे हमें कोई बात नहीं करनी, जिससे हमारा कोई मतलब नहीं है, हमारे मोबाइल में उसका नंबर क्या करेगा? क्या हम ऐसे लोग लगते हैं कि बाहर के लोगों से संपर्क रखें? वो तो हमारी जाति का भी नहीं था। दूसरी जाति के लोगों को हम जानते तक नहीं है। हमारे घर की औरतें बस अपने काम से मतलब रखती हैं, बाहर कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, उस ताकाझांकी से हमें कोई मतलब नहीं है। हमारे पूरे घर में एक ही फोन है वो भी पापा या भैया के पास ही रहता था।’

तस्वीर आरोपियों के घर की है। इनका घर पीड़ित के घर के सामने ही है, बीच में बस एक छोटा तालाब है।

तस्वीर आरोपियों के घर की है। इनका घर पीड़ित के घर के सामने ही है, बीच में बस एक छोटा तालाब है।

वो कहती हैं, ‘दीदी कभी-कभी परेशान तो लगती थीं, लेकिन उन्होंने अपने मुंह से कभी ये नहीं कहा कि उन्हें क्या परेशानी थी। वो सुबह चार बजे से उठकर शाम तक घर के काम में लगी रहती थीं। वो थोड़ी सहमी-सहमी रहती थीं लेकिन कभी इस बारे में कुछ बोला नहीं। हम तो यही समझते थे कि शायद पूरा दिन काम करने की थकान की वजह से उनका चेहरा ऐसे हो जाता है। होगी कोई बात जो उन्होंने हमें नहीं बताई होगी।’

मीडिया के कैमरों से किसी तरह नजर बचाकर पीड़ित की मां रसोई के बिखरे बर्तन समेटने की कोशिश करती हैं। उनकी आंखें रो-रो कर लाल हो गई हैं। गला बैठ गया है। वो कई दिनों से सो नहीं पाई हैं। कहती हैं, जब तक बेटी थी रसोई में कदम नहीं रखा, एक तिनका तक नहीं छूने देती थी। ये कहते-कहते उनके शब्द सिसकियों में बदल जाते हैं, आंसू बोलने लगते हैं। जिस बेटी को अपने घर से बाहर की दुनिया से कोई मतलब नहीं था उसकी दर्दनाक मौत ने परिवार को तोड़ दिया है।

पीड़ित के परिवार और दलितों को डर है कि एक बार मीडिया के कैमरे यहां से चले जाएंगे तो उन्हें दिक्कतें होने लगेंगी। यहां दलितों के पास जमीन नहीं है और लोगों को तथाकथित उच्च जाति के लोगों के खेतों में ही काम करना पड़ता है, पशुओं के लिए घास काटने भी उन्हीं के खेतों में जाना पड़ता है।

मंगलवार की रात को पुलिस ने जो रवैया अपनाया, जिस तरह पीड़ित के परिवार को जबरदस्ती घर में बंद कर अंतिम संस्कार किया उसके बाद उनमें असुरक्षा और बढ़ गई है। पीड़ित परिवार की सुरक्षा के सवाल पर पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर यही कहते हैं कि उन्हें सुरक्षा मुहैया करा दी गई है, पुलिस की तैनाती आगे भी बनी रहेगी। लेकिन इस बंटे हुए समाज में पुलिस कब तक सुरक्षा दे पाएगी, ये सवाल रह जाता है।

पुलिस ने मंगलवार रात को 2.30 बजे पीड़ित का अंतिम संस्कार कर दिया था। परिवार का आरोप है कि उन्हें बिना बताए पुलिस ने खुद ही लाश जला दी।

पुलिस ने मंगलवार रात को 2.30 बजे पीड़ित का अंतिम संस्कार कर दिया था। परिवार का आरोप है कि उन्हें बिना बताए पुलिस ने खुद ही लाश जला दी।

पीड़ित के बारे में गांव के जितने लोगों से बात की सभी का यही कहना था कि वो बहुत सीधी लड़की थी, घर से बहुत ज्यादा बाहर निकलती नहीं थी। कभी-कभी अपनी मां के साथ घास काटने जाती थी। तब भी किसी से कुछ बोलती नहीं थी। स्कूल कॉलेज वो गई नहीं थी तो बाहरी दुनिया की ज्यादा समझ नहीं थी।

उसकी मौत के बाद गांव की लड़कियों, खासकर दलित परिवारों की बेटियों में दहशत है। उनके चेहरे पर खौफ नजर आता है। मैं एक दलित युवती से बात करने की कोशिश करती हूं तो वो बहुत ज्यादा बोल नहीं पाती। बस इतना ही कहती है, ‘इतनी अच्छी दीदी के साथ इतना बुरा हुआ। अब कौन लड़की खेत की ओर जाने की हिम्मत करेगी। लेकिन जाना तो है ही। ढोर भूखे तो मरेंगे नहीं।’

पीड़ित और आरोपियों के घरों के बीच ज्यादा फासला नहीं है। आरोपियों के घर बस औरतें और छोटे बच्चे ही नजर आते हैं। अपने घर के लड़कों का बचाव करते हुए वो बार-बार यही कहती हैं कि इन छोटी जाति के लोगों से उनके परिवार का कोई संबंध नहीं था। पुरानी रंजिश में हमारे बेटों को फंसाया गया है। अपने बेटों का बचाव करते हुए वो पीड़ित के चरित्र हनन का भी कोई मौका नहीं छोड़ती।

जिस पुरानी रंजिश की वो बात कर रही हैं उसका संबंध भी छेड़खानी की घटना से ही है। पीड़ित की बुआ से आरोपी संदीप के पिता ने बीस साल पहले छेड़खानी की थी। तब पीड़ित के दादा ने विरोध किया था तो उनकी उंगलियां काट दी थीं। गांव के लोग उस घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं, आरोपियों का परिवार ऐसा ही है, पहले से ही ये लोग महिलाओं को परेशान करते रहे हैं। ये दबंग हैं, बात-बात पर मारपीट करते हैं इसलिए कोई इनके खिलाफ बोलता नहीं है, थाने नहीं जाता।

पीड़िता के गांव में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है।

पीड़िता के गांव में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात है।

आरोपी रामू की मां कहती हैं, ‘ये नीची जाति के लोग हम ठाकुरों से मुआवजा लेने के लिए हमें झूठे मुकदमों में फंसा देते हैं। हमें भगवान की अदालत पर भरोसा है, हमारा बंसी वाला न्याय करेगा। मेरा बेटा उस दिन ड्यूटी पर था। जिसे शक वो हो वो जाकर कंपनी के रजिस्टर चेक कर सकता है, लेकिन हमारी सुनेगा कौन। सब तो उस परिवार के साथ हैं। मंत्री-संतरी सब वहीं जा रहे हैं। जिस परिवार को इतना सब मिलेगा वो तो हम पर चढ़ेगा ही।’

इस घटना पर कुछ लोगों ने ये सवाल उठाया है कि एफआईआर 3 बार बदली गई और पीड़ित ने बयान भी बदले। इस सवाल पर एसपी कहते हैं, ‘पीड़ित ने जैसे बयान दिए, हमने वैसा केस दर्ज किया। बयान वीडियो रिकॉर्ड पर हैं। महिला पुलिसकर्मियों ने अस्पताल में उसका बयान रिकॉर्ड किया है। उसने अपने साथ गैंगरेप की बात कही है। उसी आधार पर गिरफ्तारियां हुई हैं।’

एसपी कहते हैं, ‘लड़की की जीभ नहीं काटी गई थी। रीढ़ की हड्डी नहीं, गले की हड्डी टूटी थी। अभी जो मेडिकल रिपोर्ट आई है उसमें यौन हिंसा की पुष्टि नहीं हुई। फोरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार है। हम सभी सबूत जुटा रहे हैं।’

पीड़ित ने पहले रेप की बात क्यों नहीं की थी, इस सवाल पर उसकी मां कहती हैं, ‘तीन दिन बाद जब उसे जब ठीक से होश आया तो उसने पूरी बात बताई। पूरा बयान दिया। वो इंसाफ चाहती थी।’ इस घटना पर उठ रहे सवालों के बीच बीती रात एसआईटी की टीम भी गांव पहुंच गई है, जो अब एक हफ्ते में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले की निगरानी कर रहा है। पुलिस ने हाथरस की सीमाएं सील कर दी हैं, धारा 144 लगा दी है। मीडिया को अब गांव में जाने की अनुमति नहीं है, एसआईटी बीती रात पहुंच गई थी, अब गांव का दौरा कर रही है।

हाथरस गैंगरेप से जुड़ी आप ये खबरें भी पढ़ सकते हैं…

1. गैंगरेप पीड़िता के गांव से रिपोर्ट:आंगन में भीड़ है, भीतर बर्तन बिखरे पड़े हैं, उनमें दाल और कच्चे चावल हैं, दूर खेत में चिता से अभी भी धुआं उठ रहा है

2. हाथरस गैंगरेप / पुलिस ने पीड़ित की लाश घर नहीं ले जाने दी, रात में खुद ही शव जला दिया; पुलिस ने कहा- शव खराब हो रहा था इसलिए उसे जलाया गया

3. दलित लड़की से हाथरस में गैंगरेप / उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ी, जीभ काट दी, 15 दिन सिर्फ इशारे से बताती रही, रात 3 बजे जिंदगी से जंग हार गई वो बेटी

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Tags: childrendaughterfamilyGang rapehathras
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